सोमवार, 28 दिसंबर 2009

एक तीव्र इच्छा उठती है ....................

एक तीव्र इच्छा उठती है .................... जब कभी आपकी कुछ खाने कि इच्छा होती है तो आप खा लेते है या सोने कि इच्छा होती है तो आप सो लेते है क्योंकि ये सभी आपके कण्ट्रोल में है पर उन बातो का क्यो जो आपके कण्ट्रोल में नहीं है क्योंकि समय बड़ा बलवान है आज जो आपके कण्ट्रोल है हो सकता है कल आपके कण्ट्रोल में नहीं हो. तब आप मन मसोक कर रह जाते हो पर आपका मन , आपकी भावनाए आपको हर वो गलत काम करने के लियें मजबूर करेंगे , और हो सकता है आपकी बात बिगड़ जाएँ ..................तो फिर क्या करें , वक्त रहते अगर ये बात समझ नहीं आयी तो .................

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

संयम और विवेक का इस्तेमाल करें...थोड़ा ध्यान योग का प्रयोग भी सहायक सिद्ध होगा.

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यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

आपका साधुवाद!!

नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!

समीर लाल
उड़न तश्तरी

बेनामी ने कहा…

पियूष जी,

आपका आत्म चिंतन पसंद आया, फिलहाल आपके ब्लॉग का अध्ययन कर रहा हूँ लिहाजा विशेष टिप्पणिया बाद में दूंगा / तोभी विषय ब्लॉग का बड़ा सुन्दर है लेखन जारी रखिये गा / थैंक्स/