बुधवार, 30 सितंबर 2009

एक अनोखा सुकून

एक अनोखा सुकून ............ जी हाँ जिस सुकून की मैं बात कर रहा हूँ वह है रोज जलाभिषेक करने का मन्दिर में .............. महाम्रत्युन्जय मंत्र के जाप का , हनुमान चालीसा पढने का , संकटमोचन हनुमानाष्टक पड़ने का ................. एक अनोखा सुकून................ आप विश्वास मानिये और करके देखियें एक अध्यात्मिक शान्ति मिलेगी ...........

शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

मैं कौन हूँ ....................

मैं कौन हूँ .................... यह एक सवाल है जिसका जानना बहूत जरूरी है हर इन्सान की जिंदगी में, मैं मतलब अहंकार ................. जब आप बात करते हैं "मैं" की तो आप हमेशा इस शरीर की बात करते हैं जो भी आपका नाम होता है..... जैसे राम ने बोला ये ब्लॉग राम ने बनाया, तो राम ने जिस राम की बात कहीं वो उस दो पैर , दो आँख , दो कान वाले एक शरीर की बात की ........... पर असलियत में तो राम, राम का शारीर नही हैं वह तो एक चोला है, जो की उस आत्मा ने इस जीवन चक्र कोचलने के लियें धारण करने के लियें धारण किया हैं। राम तो उसी परमात्मा का अंश है ............... इसीलियें जब आप अपनी बात करें तो हमेशा ये ध्यान रखें की आप आपके शरीर की बात नहीं कर रहे अपितु उस परम आत्मा की बात कर रहें हैं ..................... साईं राम ..................

शनिवार, 12 सितंबर 2009

समाधी क्या हैं ?

समाधी क्या हैं ? जी हाँ समाधी ..........जागते हूए का स्वप्न है समाधी .................... नींद में तो आप सपना देखते है और उसमे आप सर्व शक्तिमान बन जाते है पर वो एक स्वप्न रहता हैं ...... जरा गौर किजीयें स्वप्न में आप जो चाहें वो कर सकते है आप उड़ सकते हैं पानी पर चल सकते हैं आप ऐसी ऐसी जगह जा सकते हैं जहाँ आप खुली आँखों से सोच भी नही सकते , पल भर में हिमालय तो कभी समुद्र की गहराइयों में गोता लगा सकते हैं, मन की गति से आप हर वो कार्य कर सकते हैं जो की जाग्रत अवस्था में आप नही कर तो क्या सोच भी नही सकते ................................... पर समाधी जाग्रत अवस्था का स्वप्न हैं जिसमें आप चेतन अवस्था में रहते हुए या जाग्रत अवस्था में रहते हैं और आप वो सारी चीजे जो की नींद में करते हो , सोचते हो कर सकते हो इसी लियें तो साधू संत समाधी पर जोर देते हैं और वो ख़ुद भी समाधी में लीन रहते हैं । समाधी एक अवस्था हैं जिसमे आप ख़ुद उस सर्व शक्तिमान सत्ता के समतुल्य या सर्व शक्तिमान बन जाते हों ॥ परमात्मा के समीप जाने और उन्हें महसूस करने का एक यही सर्वोतम साधन हैं। भगवन आपको अपने से संचार स्थापित करने का एक माध्यम देता हैं जिसका नाम समाधी हैं। और हाँ समाधी के लियें जो आवश्यक शर्त हैं वो ये की आपमें अहम नही होना चाहियें वैसे समाधी में जाने के बाद वैसे भी आपका अहम रहता ही नही हैं । क्योंकि अभी आप खड़े हैं या बैठे हैं मतलब आपकी रीढ़ की हड्डी आपको लियें खड़ी हैं यहीं अहम हैं .....................कैसे ? जैसे ही आप समाधी में जाते हैं आपका अहम निकल जाता हैं और आप गिर जाते हैं जिस भी पोजीशन आप में होते हैं ..... यही सबूत हैं आपके अहम निकल जाने का ...................... ॐ साईं राम बाबा मदद करें आपको समाधी समझने में ..........

स्रष्टि के मूल में क्या है

स्रष्टि के मूल में क्या है ? जी हाँ स्रष्टि के मूल में बिन्दु तत्व है , बिज तत्त्व जो की शिव का आधार हैं .............. आख़िर उस बिन्दु या बिज तत्त्व में है क्या ? उस बिज तत्त्व में वही हैं .............आप क्या समझते हैं ये ब्रह्मांड इतना बड़ा हैं जितना आप देख रहें है और जितनीआपकी सोच हैं , जो जितना बड़ा हैं वो उतने ही छोटे में समाया हुआ है ... बिन्दु में .... यही बिज है.... यही स्रष्टि काआधार हैं................. स्रष्टि का मूल आप है आप में ही समस्त स्रष्टि समाई हुई है (आप मतलब आपका शरीर नही , बल्कि आपकी आत्मा जो की उस परम चैतन्य का अंश है ...) आप के शरीर में ही धरती , आकाश, पाताल, ब्रह्मा, विष्णु , महेश समायें हुये हैं । पर यह सब आपको पता कब चलता हैं ? जब आप समझ जाते हैं की मैं कौन हूँ......

गुरुवार, 10 सितंबर 2009

ध्यान लगाने पर भी कुछ मिलता ? नही.

साईं राम जी हाँ हम लोग अक्सर शिकायत करते है की हम रोज़ सुबह ध्यान लगाने की कोशिश करते है या हमें हमारे बड़ेबुजुर्गो द्वारा समझाया जाता है की सुबह सुबह ध्यान लगना चाहियें ......... पर फिर भी कुछ नही होता ..........क्यों ? इसका जवाब है की हम सही ध्यान नही लगाते, तो फिर सही ध्यान में क्या हैं ....... हमारी आत्मा इस शरीर में सातों चक्रो में भ्रमण करती है और आपको ध्यान भी उसी पर लगाना चाहियें .... पर ये कोई नही बताता की आत्मा कब यानि किस समय २४ घंटो में किस चक्र में रहती है .... और इसीलियें आपको अभी तक धयन का फल मिला नहीं , क्योंकि जब आप ध्यान लगते है तो आप समझते हैंकी आपको सिर्फ़ आँखों के बिच में ही ध्यान केन्द्रित करना हैं पर हो सकता है की उस समय आपकी आत्मा याजीवात्मा आपके मूलाधार चक्र में हो या और किसी चक्र में ..................................... और आप आँखों के बिच में ही ध्यान केंद्रित करते है तो आपको ध्यान का फल कहाँ से मिलेगा ..... और यदि आप सही ध्यान लगाने में सफल हो जाते है तो फिर देखियें आप संपूर्ण जगत के मालिक बन जातेहैं............ तो अब से ऐसे अध्यात्मिक गुरु की तलाश शुरू कर देना है जो की आपको ये सब बताय..........

शुक्रवार, 4 सितंबर 2009

चंदन धारवाल जी के सवाल का जवाब देने की कोशिश कर रहा हूँ प्रश्न : सीक्रेट ऑफ़ लाइफ और हम माया की दुनिया में क्यों है जब ये भागवान की ही तो माया है। हम क्यों जी रहें हैं ............. सबसे पहले तो जीव क्या हैं ? जीव जीवात्मा हैं जिसे जन्म और मरण के बिच में कुछ अन्तराल तय करना है इस शरीर में आकर, और वह अपना जन्म ख़ुद निश्चित करता है अपने कर्मो के अनुसार। जी हाँ आपके ही कर्म उत्तरदायी होते हैं आपके। जहाँ तक माया का सवाल है ये तो जरूरी हैं क्योंकि इसके अभाव में व्यक्ति कर्म कैसे करेगा क्योंकी इसी में तो कम , क्रोध, लोभ , मोह आता हैं और इसी के बीच आपको कर्म करना हैं ................. सीक्रेट ऑफ़ लाइफ यही है की एक जीवात्मा को एक देह धारण करना होती है और वह अपने कर्मो के हिसाब से उसे धारण कर लेता हैं। जीवन तो जीना ही है पर इस माया से बचाकर.... इसके लियें इसी पेज पर आर्टिकल पढ़े " कैसे जीवन जीना हैं इस माया की दुनिया में"।