मंगलवार, 21 जुलाई 2009

वार्तालाप मेरा और गुरूजी का....

एक दिन मैंने गुरूजी से पूछा की गुरूजी मैंने कही पढ़ा है की अगर आप को सुख चाहिए तो आप आपनी जरूरतों कोकाम कर लीजिए, पर मैंने सोचा की ये तो कोई बात नही हुई, क्यो .......कोई ये नही बता सकता की आप अपनीजरूरतों को कैसे पुरा कर सकते है ................... गुरूजी : हाँ ये तो बिल्कुल ग़लत है
मै : तो फिर सही क्या है .....
गुरूजी : कबीर दास जी ने कहा है,
" ज्यादा की लालच नही पर.............................. कम में गुजारा होता नही।"
मुझे इस लाइन में गहराई समझ में गयी की गुरूजी ने इस इतनी छोटी सी लाइन में क्या बता दिया .......... सही है ना........................................... जरा सोचो की बस इतनी सी प्रार्थना करना है की मुझे ज्यादा लालच नही हैपर अगर कोई साधू मेरे घर आता है तो मुझे इतना दीजिये की मै उसका आदर सत्कार कर सकू और उसे दान करसकू ....................... यह तो एक साधू की बात हो गयी पर अगर एक हजार साधू या एक लाख साधू गए तो समझ रहे है ना आप...............
" साईं इतना दीजिये जा में कुटुंब समाये , मै भी भूखा ना रहू और साधू भी भूखा ना जाए
मतलब आपके पास इतना धन, संपत्ति ..........हर वख्त होना चाहियें , क्या पता कितने साधू जायें ............

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