मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

निर्विकार होना बहूत मुश्किल है पर

निर्विकार होना बहूत मुश्किल है पर ........... हो सकता है ये मेरी आखरी कृति हो एक लेवल पर (मेरे लियें ) ........ पर दुनिया के लियें मुझे या मेरे जैसे अन्य लोगो को तब तक लिखना पड़ेगा तब तक वो निर्विकार कि स्थिति को ना पा जायें। निर्विकार स्थिति को स्पष्ठ करना चाहूँगा जहाँ ना कोई मेरा है , ना कोई तेरा है , ना कोई भगवान है ना कोई मनुष्य है , ना कोई लेना है , ना कोई देना है , ना कोई गुरु है , ना कोई शिष्य है , ना कोई मौत है ना कोई जीवन है , ना कोई प्रश्न है , ना कोई जवाब है , ना कोई पूछने वाला है , ना कोई बताने वाला है ...........

इसका मतलब ये नहीं है कि आपको ये सब नहीं करना है आपको ये सब करना है पार इन सब को समझते हुएं ,

आपको एक काम करना है , कुछ नहीं करना है.......................

आसानी से समझ से आने वाली बात नहीं है यह कि क्यो नहीं करना ही क्या नहीं करना ही ......

पर इसे समझने के लियें आपको गहरी समझ होना जरूरी है , जब आप ये समझ जायेंगे तो आपको पता लग जायेंगा कि जिंदगी का असली मकसद क्या है मोक्ष को पाना , भगवान् को पाना और भी बहूत कुछ ............. या फिर निर्विकार हो जाना ......... जहा ना कोई चाहत है , ना कोई तमन्ना है , ना कोई मोक्ष , जन्म, म्रत्यु ,............

बस शुन्य ही ...पर शुन्य भी तो नहीं ही कुछा भी नहीं ......

आप सोचोगे तो फिर क्या मतलब ............

अरे बहूत मतलब ही , ये आपको एक ऐसे मार्ग पर प्रशस्त करेंगे जिस पर आप चलोगे तो साधारण इन्सान बनकर ही पर आप वो जगह , चीज़े पा लोगे जो इन सब से परे ही .............

जय गुरुदेव

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