गुरुवार, 1 मार्च 2012

"सेक्स से सम्भोग - और सम्भोग से स्वयमभोग - और स्वयमभोग से महाभोग


"सेक्स से सम्भोग - और सम्भोग से स्वयमभोग - और स्वयमभोग से महाभोग(महाभोग सिर्फ और सिर्फ आत्मा और जीवात्मा का ही हो सकता है न की शरीर का, जो की भगवन भोलेनाथ की महासमाधि का कारन है )  - और महाभोग से समाधि "ये रास्ता है उस परम सत्य को जानने का ओशोजी के मार्ग से जो की उन्होंने अपनी किताब "सम्भोग से समाधी की और " में लिखा है 
जी हाँ आचार्य रजनीश जी ने जो बात "सम्भोग से समाधि से की और " से बताने की कोशिश की है वो वास्तव में क्या है , ये मै अपने बुद्धि विवेक से बताने की कोशिश कर रहा हूँ कृपया उचित मार्गदर्शन दीजियेगा .....
कब सम्भोग महाभोग बनता है और उस अमरत्व की और ले जाता है | जैसा की आचार्य रजनीश  जी ने ये बताया है की हर एक मर्द में एक औरत और एक औरत में एक मर्द होता है , वो ही आपको सम्पूर्ण संतुष्टि प्रदान कर सकता है न की बहार के स्त्री और पुरुष , ये बात कोई नई नहीं है क्योंकि भगवन  भोलेनाथ ने स्वयं अपने अर्धनारीश्वर रूप में इस बात को सिध्ध किया है और माता पारवती ही वो स्त्री है जो उनके अन्दर समाई हुई है इसलियें उनका सम्भोग सामान्य सम्भोग न रहते हुए महाभोग को प्राप्त कर जाता है (महाभोग में आत्मा और जीवात्मा का मिलन होता है न की शारीर का ) और महाभोग अमर होता है |
तो आचार्य रजनीश जी ने वास्तव में सम्भोग की बात न करते हुए स्वयमभोग की बात  बोली है जो की अपने अन्दर की स्त्री(आत्मा से  जीवात्मा)  या पुरुष  (आत्मा से  जीवात्मा) के साथ करना है अब वो स्वयमभोग हो जाता है पर नासमझ लोग उसे सेक्स समझ लेते है | जब कोई स्त्री या पुरुष आपको अच्छा लगता है तो वो कही न कही आपके अन्दर के स्त्री या पुरुष से सामान हो जाता है पर वो १०० % सामान नहीं हो सकता , क्योंकि सम्पूर्णता तो आपके  स्वयं के अन्दर ही है तो आपको कोई भी बाहर सम्पूर्ण संतुष्ट कर ही नहीं सकता ........